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बाउंस रेट क्या होता है?

बाउंस रेट एक इंटरनेट मार्केटिंग शब्द है जिसका उपयोग वेब ट्रैफ़िक विश्लेषण में किया जाता है बाउंसर को हिंदी में उछाल या छलांग भी कहते हैं। बाउंस रेट उस प्रतिशत को दर्शाता है जो यूजर साइट में प्रवेश करते हैं और फिर उसी साइट के अंदर के पेज या कहे अन्य लैंडिंग पेज पर जाकर देखने की बजाये साइट को छोड़ देते है बाउंस रेट कहलाता है।

बाउंस रेट को कैसे आंका जाता है?

बाउंस रेट की गणना करने के लिए हमें एकल विजिट पेज को और टोटल विजिट पेज से भाग करनी होगी। बाउंस रेट की गणना करके कोई भी वेब साइट के कंटेंट की गुणवत्ता का पता लगाया जा सकता है।

 बाउंस रेट  % =  एकल विजिट पेज  ÷ एक वेबसाइट पर टोटल विजिट पेज  

एकल विजिट पेज और टोटल विजिट पेज

केवल एक ही पेज को देखकर पेज को छोड़ देना सिंगल पेज विजिट कहलाता है और टोटल विजिट पेज में सभी पेज जिनकी भी विजिट हुयी है चाहे वह सिंगल हो चले रिपीट विजिटर हो सारे ही आ जायेंगे।

उद्देश्य

किसी भी वेब पेज पर जाने के बाद अगर यूजर उसी साइट पर कुछ और पेज पर कंटेंट देखता है तो यह समझा जाता है की वेबसाइट का रिजल्ट यूजर के अनुकूल है। अगर एक बार वेबसाइट पर आने के बाद यूजर और पेज को नहीं देखता है या क्लिक नहीं करता है तो सर्च इंजन यह समझता है की कंटेंट यूजर के अनुकूल नहीं है। इसलिए जितना कम बाउंस रेट होगा उतनी ही वेबसाइट की रैंकिंग भी अच्छी होने के चांस बढ़ जाते हैं।

बाउंस रेट कैसे जाने?

बाउंस रेट को जानने के लिए गूगल एनालिटिकल टूल का इस्तेमाल किया जाता है इसमें वेबसाइट के बारे में जानकारी फीड की जाती है। जिस वेबसाइट को इसमें डाला जाता है उसकी पूरी जानकारी हम गूगल एनालिटिकल टूल से देख सकते हैं इसमें बाउंस रेट का भी पता चलता है।

बाउंस रेट ज्यादा होने के कारण?
  • वेब डिज़ाइन अच्छा न होना
  • गलत सुचना या कंटेंट का होना
  • यूजर उपयुक्त कंटेंट न होना
  • अच्छा नेविगेशन न होना
  • बाउंस रेट में सुधार करने के उपाय
  • वेबसाइट पर अच्छा नेविगेशन
  • अच्छा कंटेंट देकर
  • अच्छे से पढ़े जाने वाले कलर कॉम्बिनेशन से (गुड वेब डिज़ाइन)
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