Virtual Private Network / वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क एक नेटवर्क टेक्नोलॉजी है जिसमे पब्लिक इंटरनेट मे सिक्योर कनेक्शन बनाया जाता है| वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क का प्रयोग ज्यादातर कंपनीज के द्वारा किया जाता है क्योंकि उनको अपनी इनफार्मेशन को इन्टरनेट के माध्यम से सिक्योर तरीके से भेजना होता है। इसके प्रयोग से किसी कंपनी की दो या अधिक ब्रान्चेस में सिक्योर कनेक्शन स्थापित कर सकते हैं। चूँकि यह कंपनी द्वारा सिक्योर या प्राइवेट इस्तेमाल के लिए प्रयोग में लाया जाता है इसलिए इसे हम व्यक्तिगत नेटवर्क भी बोल सकते हैं। परन्तु इसे संचालित पब्लिक नेटवर्क यानि वाइड एरिया नेटवर्क से ही किया जाता है। पब्लिक नेटवर्क मे एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट तक डेटा को सिक्योर तरीके से भेजने के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क कुछ प्रोटोकॉल का इस्तेमाल भी करता है| जैसे Secure Sockets Layer (SSL), Transport Layer Security (TLS) इत्यादि।
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क या VPN क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों है।
बढ़ते हुए बिज़नस के साथ ही हमें अपने ऑफिस को काफी लोकेशन पर स्थापित करना पड़ता है। हम इसे उदाहरन से समझते हैं जैसे की हमारा सॉफ्टवेर डेवलपमेंट की कंपनी है और हम अपनी कंपनी में सॉफ्टवेर बनाकर देहली में बेच रहे है हमारी कंपनी कुछ समय बाद अगर बंगलुरु, कोल्कता या फिर कहें कनाडा, अमेरिका के लिए भी सॉफ्टवेर बनाकर बेचने लग जाती है तो क्या हम अपना ऑफिस देहली में ही रखेंगे और सर्विसेज को उन शेहरो में क्लाइंट तक पहुँचाने के लिए हमें अपने ऑफिस को भी उन लोकेशन पर स्थापित करने होंगे ताकि क्लाइंट को सर्विस अच्छे से मिल सके और कंपनी का सर्विस का खर्च भी कम आये और बिज़नस को भी आगे बढाया जा सके। अब ये सभी ऑफिस है तो एक ही कंपनी के तो इन्हें जोड़ने के लिए हमें या तो इन्टरनेट का इस्तेमाल करना पड़ेगा जोकि जोखिमो से भरा है क्योंकि कंपनी का काफी डाटा प्राइवेट होता है जिसे किसी के साथ शेयर नहीं किया जा सकता परन्तु इन्टरनेट पर तो हैकिंग या चोरी होने का डर सदैव ही बना रहता है। और ऐसा भी नहीं हो सकता की हम अपना डाटा प्रोवाते रखने के लिए अलग से देहली से कोलकाता या बंगलुरु तक लाइन बिछा दे ताकि हमारे कंपनी के डाटा को शेयर करके कर्मचारी उस पर काम कर सकें। इस समस्या के निवारण के लिए ही हम vpn यानि वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके हमें अलग से तारे बिछाने की आवश्यकता नहीं पड़ती हम पहले से ही चल रहे पब्लिक इन्टरनेट का इस्तेमाल करके अपने सभी ऑफिस को आपस में इस तरह से जोड़ सकते हैं जिससे हमारी कंपनी के डाटा की किसी बाहरी चोरी या कहें की इन्टरनेट पर चोरी का खतरा समाप्त हो जाये।
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क या VPN काम कैसे करता है।
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क एक वास्तविक रूप से किसी कंप्यूटर पर इनस्टॉल होता है जिसे हम सर्वर या VPN सर्वर कहते हैं इस सर्वर से जितने भी कंप्यूटर जुड़े होते हैं वह जो भी इन्टरनेट पर सर्फिंग या कार्य करेंगे वो सारा का सारा वी पी एन सर्वर पर आयेंगा उसके बाद उसकी रिक्वेस्ट को आगे भेजा जायेगा इस तरह से सभी कंप्यूटर सर्वर के माध्यम से ही कोई भी कार्य को पूरा कर पाते हैं। मान लीजिये अगर वी पी एन सर्वर किसी तरह की वेबसाइट को खोलने के लिए पाबन्दी लगाना चाहता है तो वह लगा सकता है क्योंकि वेबसाइट खोलने के लिए रिक्वेस्ट उसी के पास होकर ही जाएगी। वी पी एन सर्वर उस कंपनी के लिए ISP की तरह ही काम करेगा जिसके हाथ में पॉवर होती है कोई भी पाबन्दी लगाने की।
वीपीएन अपने डाटा को सिक्योर बनाने के लिए टनल का इस्तेमाल करता है। जिसके दोनों तरफ डाटा भेजने वाले की तरफ से और डाटा प्राप्त करने वाले की तरफ से एक तरह से लॉक इस्तेमाल किया जाता है। यानि कंप्यूटर की भाषा में डाटा को एनक्रिप्ट कर दिया जाता है जिस केवल प्राप्त करने वाला ही देख सकता है। डाटा को सिक्योर बनाने के लिए कुछ प्रोटोकॉल्स का इस्तेमाल किया जाता है।
Protocols used by VPN Servers
दुरूपयोग व् सदुपयोग
अब बात आती है सदुपयोग और दुरूपयोग की, इसे समझने के लिए हमें एक उदाहरण से समझना होगा। हमारा कोई भी नेटवर्क कैसे काम करता है सबसे पहले किसी भी देश में इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर यानि ISP (जैसे की भारत में IDEA, BSNL, Vodafone, Jio etc) हैं जोकि हमें इन्टरनेट की सर्विस प्रोविडे करवाते हैं। अगर भारत सरकार को कोई वेबसाइट ब्लाक करवानी है तो वह इन कम्पनीज को आदेश देगी की इस नाम की वेबसाइट को ब्लाक करना है तो ISP गवर्नमेंट के आदेश या स्वत अपनी मर्जी से उस वेबसाइट को बंद कर देता है और हम अगर उस वेबसाइट को खोलना चाहते हैं तो उसे खोल नहीं पाते हैं। जैसा की चीन में फेसबुक को खोलने पर ISP ने पाबन्दी लगा रखी है। परन्तु अगर कंपनी के अनुसार उस वेबसाइट को खोलना है तो वह VPN की सहायता से इसे आसानी से खोल सकती है। उदाहरण के तौर पर मान लेते है कोई वेबसाइट abc.com भारत में बैन है तो कंपनी अपना vpn सर्वर कनाडा में स्थापित करती है और भारत में अपने ऑफिस को उस vpn सर्वर जो कनाडा में है से कनेक्ट कर लेती है अब कोई भी वेबसाइट के लिए रिक्वेस्ट भारत से होती है तो वह उस vpn सर्वर पर जाएगी न की उस वेबसाइट पर जोकि भारत में बैन है। यानि रिक्वेस्ट कनाडा पहुँच गयी और वह वेबसाइट बैन नहीं है। vpn सर्वर उसे वेबसाइट को खोलेगा और वापिस भारत में वो वेबसाइट उसी कंपनी जहा से रिक्वेस्ट गयी है आ जाएगी। अब इसी काम को अगर देखा जाये तो कुछ लोग गलत इस्तेमाल यानि दुरूपयोग भी करते है जैसे टोरेंट भारत में अवैध है vpn सर्वर की सहायता से कुछ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क या VPN कितने तरह के होते हैं।
Remote Access VPN
रिमोट एक्सेस वीपीएन उपयोगकर्ता को एक निजी नेटवर्क से कनेक्ट करने और दूरस्थ रूप से अपनी सेवाओं और संसाधनों तक पहुंचने की अनुमति देता है। उपयोगकर्ता और निजी नेटवर्क के बीच का कनेक्शन इंटरनेट के माध्यम से होता है और कनेक्शन सुरक्षित और निजी होता है। रिमोट एक्सेस वीपीएन व्यापार उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ घर के उपयोगकर्ताओं के लिए उपयोगी होता है। एक कॉरपोरेट कर्मचारी, यात्रा करते हुए अपनी निजी नेटवर्क से जुड़ने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल करता है और निजी नेटवर्क पर दूरस्थ रूप से फाइलों और संसाधनों का उपयोग करता है। इंटरनेट सुरक्षा के प्रति जागरूक उपयोगकर्ता अपनी इंटरनेट सुरक्षा और गोपनीयता बढ़ाने के लिए वीपीएन सेवाओं का उपयोग भी करते हैं।
Intranet
जब एक ही कंपनी के कई कार्यालय (देहली कोलकाता बंगलुरु कनाडा इत्यादि) साइट-टू-साइट वीपीएन का उपयोग कर एक दुसरे से जुड़े होते हैं तो इसे इंट्रानेट (Intranet) आधारित वीपीएन या vpn कहा जाता है।
Extranet
जब कंपनियां किसी अन्य कंपनी के कार्यालय से कनेक्ट करने के लिए साइट-टू-साइट वीपीएन का उपयोग करती हैं, तो इसे एक्स्ट्रानेट (Extranet) आधारित वीपीएन (VPN) कहा जाता है।
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